समाधि के सप्त द्वार: The Seven Gates of Meditation
समाधि के सप्त द्वार: The Seven Gates of Meditation
Hardcover
Couldn't load pickup availability
Details :
Publisher : MEDMED
Author: Osho Rajneesh
Language: Hindi
Pages : 338 (10 B/W Illustrations)
Cover : Hardcover
Dimension : 21.5 cm X 18 cm
Weight : 700 gm
Edition : 2022
ISBN : 9788172610548
About The Book
यह पुस्तक आंख वाले व्यक्ति की बात है। किसी सोच विचार से, किसी कल्पना से, मन के किसी खेल से इसका जन्म नहीं हुआ; बल्कि जन्म ही इस तरह की वाणी का तब होता है, जब मन पूरी तरह शांत गया हो। और मन के शांत होने का एक ही अर्थ है कि मन जब होता ही नहीं। क्योंकि मन जब भी होता है, अशांत ही होता है।
ब्लावट्स्की की यह पुस्तक समाधि के सप्त द्वार वेद, बाइबिल, कुरान महावीर बुद्ध के वचन की हैसियत की है। मैंने इस पुस्तक को जान कर चुना। क्योंकि इधार दो सौ वर्षां में ऐसी न के बराबर पुस्तकें हैं, जिनकी हैसियत वेद, कुरान और बाइबिल की हो। इन थोड़ी दो चार पुस्तकों में यह पुस्तक के समाधि के सप्त द्वार।और यह पुस्तक आपके लिए जीवन की आमूल क्रांति सिद्ध हो सकती है।
इस पुस्तक का किसी धर्म से भी कोई संबंध नहीं है इसलिए भी मैंने चुना है न यह हिंदू है, न यह मुसलमान है, न यह ईसाई है। यह पुस्तक शुद्ध धर्म की पुस्तक है।
ब्लावट्स्की की यह किताब साधारण नहीं है। उसने इसे लिखा नहीं, उसने सुना और देखा है। यह उसकी कृति नहीं है, वरन आकाश में जो अनंत अनंत बुद्धों की छाप छूट गई है, उसका प्रतिबिंब है।तिब्बत में एक शब्द है: तुलकू। ब्लावट्स्की को भी तिब्बत में तुलकू ही कहा जाता है। तुलकू का अर्थ होता है, ऐसा कोई व्यक्ति जो किसी बोधिसत्व उसके द्वारा काम कर सके। ब्लावट्सकी तुलकू बन सकी। स्त्री थी इसलिए आसानी से बन सकी; समर्पित। जो लोग ब्लावट्स्की के पास रहते थे, वे लोग बड़े चकित होते थे। जब वह लिखने बैठती थी, तो आविष्ट होती थी, पजेस्ड होती थी। लिखते वक्त उसके चेहरे का रंग-रूप बदल जाता था।
आंखे किसी और लोक में चढ़ जाती थी। और जब वह लिखने बैठती थी तो कभी दस घंटे, कभी बारह घंटे लिखती ही चली जाती थी। पागल की तरह लिखती थी। कभी काटती नहीं थी, जो लिखा था उसको।
यह कभी कभी होता था। जब वह खुद लिखती थी, तब उसे बहुत मेहनत करनी पड़ती थी। तो उसके संगी-साथी उससे पूछते थे: यह क्या होता है? तो वह कहती थी कि जब मैं तुलकू की हालत में होती हूं तब मुझसे कोई लिखवाता है। थियोसाफी में उनको मास्टर्स कहा गया है। कोई सद्गुरु लिखवाता है, मैं नहीं लिखती, मेरे हाथ किसी के हाथ बन जाते है, कोई मुझमें आविष्ट हो जाता है और तब लिखना शुरू हो जाता है। तब मैं अपने वश में नहीं होती; मैं सिर्फ वाहन होती हूं। यह पुस्तक भी ऐेसे ही वाहन की अवस्था में उपलब्ध हुई है।
कभी कभी ऐसा होता था कि कुछ लिखा जाता था और उसके बाद महीनों तक वह अधूरा ही पड़ा रहता था। ब्लावट्स्की के संगी साथी कहते है कि वह पूरा कर डालो जो अधूरा पड़ा है। वह कहती कि कोई उपाय नहीं है पूरा करने का, क्योंकि मैं करूं तो सब खतरा हो जाए; जब मैं फिर आविष्ट हो जाऊंगी, तब पूरा हो जाएगा। उसकी कुछ किताबें अधुरी ही छूट गई हैं, क्योंकि जब कोई बोधिसत्व चेतना उसे पकड़ ले, तभी लिखना हो सकता है।
Share
