गीतांजलि: Gitanjali
गीतांजलि: Gitanjali
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By - रवींद्रनाथ ठाकुर (Rabindranath Thakur)
पुस्तक के विषय में
रवींद्रनाथ टैगोर, चॉसर के संदेशवाहक की भांति, अपने शब्दों में गीत लिखते हैं और पाठक प्रत्येक क्षण समझता है कि ये बहुत विशाल, बड़े ही स्वाभाविक, बड़े ही उन्मुक्त भावुक और बड़े ही अद्भुत हैं, क्योंकि वे एक ऐसा कार्य कर रहे हैं जो किसी प्रकार विचित्र, अस्वाभाविक या प्रतिक्रियात्मक प्रतीत नहीं होता । ये कविताएँ उन तरुणियों की मेज पर सुंदर छपी हुई छोटी पुस्तक के रूप में नहीं पड़ी रहेंगी, जो अपने अलस करों से उठाकर एक उसी निरर्थक जीवन पर आहें भर सकें, जितना मात्र की वे जीवन के विषय में जान सकी हैं, अथवा जीवन के कार्य व्यापार में अभिनव प्रविष्ट छात्र उसे विश्व- विद्यालय में एक तरफ रख देने मात्र के लिए ले जाएँ बल्कि क्रमागत पीढ़ियों में यात्री लोग राजमार्ग पर चलते हुए और नावों में आगे बढ़ते हुए गुनगुनाएँगे।एक-दूसरे की प्रतीक्षा करते हुए प्रेमी इन्हें गुनगुनाते हुए इस ईश्वर-प्रेम में एक ऐसी ऐंद्रजालिक खाड़ी पाएँगे जिसमें उनका उग्रतर प्रेमोन्माद स्नान करके अपने यौवन को नवीन कर सकेगा। इस कवि का हृदय प्रतिक्षण बिना किसी प्रकार के अद्यःपतन के अप्रतिहत रूप से उन तक जाता है, क्योंकि इसने जान लिया है कि वे समझेंगे; और इसने अपने को उनके जीवन के वातावरण से आर्च कर रखा है ।
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